Monday, September 6, 2010

महालक्ष्मी व्रत 16 days



हालक्ष्मी व्रत भाद्रपद शुक्ल की अष्टमी (eighth day after new moon in September) - आश्विन कृष्ण की अष्टमी (eighth day after full moon in September), को मनाया जाताहै ..इसे नंदाअष्टमी या राधाअष्टमी के नामसे भी जानाजाता है इस व्रत के दौरान जो पूर्णिमा पड़ती है उस दिन भी कुछ लोग व्रत रहतेहै l उसे उमा महेश्वर व्रत कहते है हिन्दूमान्यतायों के अनुसारयह व्रत १६वर्षो तक कियाजाता है कुछजगहों पर प्रतिवर्ष १६ दिनोंमें इसका उद्यापन करदिया जाता है यदिविधि विधान से पूर्ण भक्ति से ये व्रत किया जाय तो मनोकामना पूर्ण होती हैlलेकिन आप किन्ही कारणों से यह व्रतइतने लम्बी अवधि के लिए न कर पाए तो तो ३ दिन के लिए भी कर सकते है प्रथम,मध्य एवं अंतिम होता है
इसव्रत के लिए यह सलाह दी जाती है की व्यक्ति इसे १६ वर्ष तक निरंतर रहते हैतथा "उमा महेश्वरी व्रत "१८ वर्ष तक रहे ,यदि आप ये व्रत इस प्रकार सेनिरंतर रहते है तो सर्वथा सभी कामनाओ की पूर्ति होगी ,इसमें कोई संशय नहींlइस व्रत में स्त्रियाँ १६ दिनोंतक अन्न ग्रहण नहीं करतीं हैइसमें केवल फल , दूध मिठाई कुट्टू और सिंघाड़े का आटा ही खाया जाता है१६ दिनों केबाद इस व्रतका विधिपूर्वक तारोंतथा चन्द्रमा कोअर्दय देकर इसकाउद्यापन किया जाताहै
इसव्रत को करनेसे पूर्ण रूपसे महालक्ष्मी की कृपाप्राप्त होती हैएवं धन, समृद्धि , वैभव की प्राप्ति होती है इसव्रत का उद्यापन पति औरपत्नी एक साथ मिल करकरते है जिसमे हर मनोकामना पूर्ण होती है.व्रत केआखिरी दिन पति पत्नी एक साथ मिल कर भोजन कर अपना व्रतखोलते है जो भी भक्त सच्चे मन से इसव्रत को करते है उनकी हर इच्छा पूर्ण होती है
हर रोज माता महालक्ष्मी को दीया जलाया जाता हैआखिरी दिन १६ दीपक जालाये जाते हैतथा चंद्रोदय के बाद तारों को अर्ध्य देकर माँ की पूजा कीजाती है १६ धागों की १६गांठें लगा करमाँ के आशीर्वाद स्वरुप लाल रेशमी धागें तयार किये जाते है
व्रतके उद्यापन केदिन दो सूप में माँ के १६श्रृंगार भेंट किये जातेहै जिनमे १६ मीटर वस्त्र ,१६ कंगन ,१६ बिंदी ,१६ कुमकुम ,१६ मेहंदी आदि शामिल है इन सभी को 17 वे दिन महालक्ष्मी केमंदिर में दान कर दियाजाता है तथामाँ के धागे को कलाई में पहन लिया जाता है
यहमान्यता है की इन धागों को हर महत्वपूर्ण कामों में पहना जाए तो माँ का आशीर्वाद बना रहता है

महालक्ष्मी व्रत ( विधान )
१-लकड़ी की चौकी पर श्वेत रेशमी आसन (कपडा )बिछाएं ,रेशम के अभाव में कोई भीश्वेत वस्त्र बिछा सकते है परन्तु वस्त्र रेशमी हो तो उचित रहेगा l
२- यदि आप मूर्ति का प्रयोग कर रहे हो तो उसे आप लाल वस्त्र से सजाएँ l
३- संभव हो तो एक कलश पर अखंड ज्योति स्थापित करें

४-सुबह तथा संध्या के पूजा आरती करें /खीर, मेवा,मिठाई का नित्य भोग लगायें l
५- लाल कलावे का टुकड़ा या लाल रेशमी वस्त्र लीजिये तथा उसमे १६ गांठे लगा कर कलाई में बांधलीजिये इस प्रकार प्रथम दिन सुबह पूजा के समय प्रत्येक घर के सदस्य इसेबांधे एवं पूजा के पश्चात इसे उतार कर लक्ष्मी जी के चरणों में रख देंइसका प्रयोग पुनः अंतिम दिन संध्या पूजा के समय होगा
६-व्रत के अंतिम दिन उद्यापन के समय बांस के बने दो सूप लें (बांस की सिकरी),किसी कारण बस आप को सूप ना मिले तो आप नए स्टील की थाली ले सकते है
७-इसमें १६ श्रृंगार के सामान १६ ही की संख्या में और दूसरी थाली अथवा सूपसे ढकें ,१६ दिए जलाएं ,पूजा करें,थाली में रखे सुहाग के सामान को देवी जीको स्पर्श कराएँ एवं उसे दान करने का प्रण लें l
८-जब चन्द्रमा निकल आये तो लोटा में जल लेके तारों को अर्घ दें तथा उत्तरदिशा की ओर मुंह कर के पति पत्नी एक दुसरे का हाथ थाम कर के मातामहालक्ष्मी को अपने घर आने का (हे माता महालक्ष्मी मेरे घर आ जाओ )इसप्रकार तीन बार आग्रह करें l
९-इसकेपश्चात एक सुन्दर थाली में माता महालक्ष्मी के लिए बिना लहसुन प्याज का,भोजन सजाएँ तथा घर के उन सभी सदस्यों को भी थाली लगायें जो व्रत है/यदिसंभव हो तो माता को चादी की थाली में भोजन परोसें उत्तर दिशां में मुहकरके बाकि व्रती पूर्व या पक्छिम दिशा की ओर मुह कर के भोजन करें l
१०-भोजन में पूरी ,सब्जी, रायता और खीर हो l
११-भोजनके पश्चात माता की थाली ढँक दें एवं सूप में रखा सामान भी रात भर ढंकारहने दें ,सुबह उठ के इस भोजन को किसी गाय को और दान सामग्री को किसीब्राह्मण को ,जो की इस व्रत की अवधी में महालक्ष्मी का जाप करता हो,देकर आशीर्वाद लें ल
दान सामग्री की सूची :
-16 चुनरी
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16 बिंदी
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16 सिंदूर
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16 पनरंदा (रिब्बन)
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16 कंघा (कोब्म)
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16 शीशा
-वस्त्र १६ मीटर श्वेत वस्त्र या १६ रुमाल

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16 बिछिया
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16 नाक की खील या नथ
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16 फल
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16 मिठाई
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16 मेवा
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16 लौंग
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16 इलायची
महालक्ष्मी जी का मंत्र- "ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्षम्ये नमः"

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