Friday, November 19, 2010

अंतिम विदा पूर्ण कर आई



अंतिम  घडी 
फिर  याद 
है  आयी 
पूर्ण  समर्पण 
करके   आई 
नए  संसार 
में  खोया  था  वो 
अपनों  में  भी 
तनहा  था  वो 
परियो  की  याद
दिल  में  बसाए 
मज़बूरी  को  रोया 
था  वो 
बीती  रातें 
छिपी  ह्रदय  में 
चेहरे  पे  एक 
नकाब  लिए  था 
अपने  नन्हे 
फूल  को  भी 
दिल  से 
 याद करने  का  भी 
मन  न  था  उसका 
जा  रहा  नए  
सपने  सजाने 
अपनी  दुल्हन  को 
संग  ले  आने 
हर  पल 
जुड़ा  था 
अपने  अतीत  से 
एक  और 
नया  घर  उसका 
दूजे 
उसका  अनचाहा  रिश्ता  …
बढे  जा  रहे 
हर  कदम  थे 
रस्मो  को 
अपमानित  करने 
उस  पावन 
सिन्दूर  के 
पक्के  रंग  को 
निर्लज  करने 
हाथ  न  काँपे 
चड़ा दिया  उस 
रंग  को 
उसने 
मन  में  अभिलाषा 
मुस्काई 
आज  घडी  फिर 
सुहागरात  की  आई 
आज  घडी  फिर 
सुहागरात  की  आई 
एक  और  हसीं  
मेरे  संग 
आई 
दूजी  और 
अतीत  था  उसका 
अविचल  ,अस्थिर 
अनजाना  सच  से 
आँचल  में  छिपाए 
अपने  प्रिय  के 
पावन  प्रेम  को  …
देनी  है  आज 
उसको 
दिल  खोल  विदाई 
कमजोर  न  करना 
ईश्वर  मुझको 
कर  जाना  है 
 त्याग  ये  मुझको  
माँ  के  गर्भ  में 
सोया  था  वो 
देख  रहा  पल 
पल  तनहाई
बरातियो  की 
भीड़   में  जिस  पल 
शान  से   आये 
 दुल्हे  राजा
माँ  ने  मिलवाया 
था  उसको 
देख  ले  इसको 
ये  ईश्वर  
तेरा 
प्राण पिता  है 
ये  पल
  अनमोल  
इस  एक  ही  
पल  में 
खुशिया  ढेरो  तू 
बटोर  ले 
था  तकाजा  कुछ 
वक़्त  का  ऐसा 
पल  ये 
बस  अब  कुछ 
ही  क्षण  का  था 
दर्द  से  थी  उसकी 
माँ  कहराई 
कहने  लगी 
चलो  अब 
हुयी  विदाई 
याद  शब्द 
फिर  उनके  आये 
हँसते  हुए  हर 
एक  पल  जाना 
साथ  में  फिर  तुम 
खुशियाँ  लाना 
पर  अश्रुधारा 
फिर  रुक  न  पायी 
अंतिम  विदा 
पूर्ण  कर  आई 
मैं  नारी 
फिर  भी 
बेवफा  कहलाई 

क्यूंकि  
मैं 
अंतिम  विदा 
पूर्ण  कर  आई 

अंतिम  विदा 
पूर्ण  कर  आई 
 ....................

                                                               

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