Saturday, June 4, 2011

सिर्फ एक रहम तू कर दे मुझ पर



तूने खुद से मुझे जुदा किया है

अहसासों को भी तू जुदा कर दे

सिर्फ एक रहम तू कर दे मुझ पर

मोहब्बत को भी मेरी तू फना कर दे


सोच मेरे बारे में अब तू

दिल तुझसे मेरा जुदा नहीं है

काँप जाती है रूह मेरी

आहट तेरी जब भी होती है


नफरत से विदा किया तुझे मैंने

ये जान मेरी अब भी रोत़ी है

कसूर जब खुदा का ही तो

परवान क्यों सिर्फ मोहब्बत होती है


तबाह इश्क में हो जाती है

फिर भी हर पल नफरत सहती है

जीने दे इस रंजिश में मुझको

जुदा खुदसे तू करदे मुझको


आंसू भी रुकते नही अब मेरे

सिमट रही अब है जिंदगानी

कैसे पार लगेगी तुफानो में

मुस्कान तेरी तनहा है जग में


तू पहुँच चुका है मंजिल पे अपनी

मुझे खोजनी है राह अनजानी

फ़र्ज़ निभाने दे तू मुझको

क़र्ज़ तेरा चुकाने दे मुझको


सिर्फ एक रहम तू कर दे मुझ पर

यादों से तेरी मिटा दे मुझको

सिर्फ एक रहम तू कर दे मुझ पर

उन अहसासों से अपने जुदा कर मुझको


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