Thursday, May 26, 2011

पावन,निर्मल , निह्श्छल सा मन था .........

गोपियों संग जब रास वो रचता

मुस्काता रहता ,रंगीला कान्हा

राधा के संग रास रचे तब

संग झूमती थी गोपियाँ


पावन असीम निर्मल वो मन था

ह्रदय में जिसके सिर्फ प्रीत बसन था

जग जाने उसका हर वो रिश्ता

पर निश्छल वो ह्रदय था उसका


प्रीत जग में फैली उसकी

मुस्कान से अपनी दिल को हरता

माफ़ी मांगू उस कान्हा से मैं

रूप को उसके जग में देखा


आज कन्हैया कंही खो गया

मीरा की ही लाज वो हरता

लाल सुर्ख सिंदुर के रंग से

ब्रज की होली आज वो रमता


जो कान्हा लाज बचाता कल था

आज कन्हैया लाज है हरता

छिप कर सारे संसार से

सिंदुर को ही अपमानित करता


माफ़ी मांगू उस कान्हा से मैं

रूप को उसके जग में देखा

माफ़ी मांगू उस कान्हा से मैं

रूप को उसके जग में देखा



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