एक बार वासुदेव श्री कृष्ण अत्यंत भावुक मुद्रा में लीन होकर अपनी बांसुरी बजा रहे थे .तभी उनकी 16,108 पत्नियों में से सत्यभामा और जाम्बवती वहा पहुची …पर श्री कृष्ण इतने लीन थे
अपने विचारों में की उन्हें उनके आगमन का भान ही न था ..उन दोनों ने कृष्ण को
पुकारा भी ,उनको विचलित करना भी चाह .पर कृष्ण तो जेसे किसी अन्य लोक में
खो चुके थे …..
दोनों ही पत्नी को अत्यंत दुःख हुआ की श्री कृष्ण को अपनी
पत्नी से बढकर और किसका ध्यान ..तभी श्री नारदमुनी जी वहा प्रकट हुए और
उन्होंने उन्हें बताया की कृष्ण गोपियों की याद में खोये है ..
उसके बाद उन दोनों ने कृष्ण की अत्यंत प्रेम ,समर्पण के साथ उनकी सेवा की पर कृष्ण पर किसी का कोई असर न हुआ …कान्हा तो अपनी गोपियों की गाथा गाते न थकता ..उनकी यादों में आँखे उसकी भर आती …दोनों पत्नियों ने कहा स्वामी यदि आपको हमारे प्रेम पर संकोच है तो हम आपके लिए अपने प्राण तक देने में भी पीछे नही हटेंगे ..आप जो चाहे परीक्षा ले ले ….
उसके बाद उन दोनों ने कृष्ण की अत्यंत प्रेम ,समर्पण के साथ उनकी सेवा की पर कृष्ण पर किसी का कोई असर न हुआ …कान्हा तो अपनी गोपियों की गाथा गाते न थकता ..उनकी यादों में आँखे उसकी भर आती …दोनों पत्नियों ने कहा स्वामी यदि आपको हमारे प्रेम पर संकोच है तो हम आपके लिए अपने प्राण तक देने में भी पीछे नही हटेंगे ..आप जो चाहे परीक्षा ले ले ….
कुछ समय के बाद एक बार
श्री कृष्ण को पेट में बहुत पीढ़ा होने लगी ..सभी वैध का उपचार
कराया गया पर कोई आराम उन्हें नहीं मिला …तभी श्री कृष्ण बोले उनकी ये
पीढ़ा को दूर करने का सिर्फ एक ही उपचार है .अगर उनका कोई भी परमभक्त
अपने चरणों की एक चुटकी धूल का सेवन
श्री कृष्ण को करा देगा तो उनकी ये पीढ़ा कम हो जायगी
.उन्होंने अपनी पत्नियों से ये कार्य करने को बोला ..परन्तु उन
दोनों ने यह कह कर न बोल दिया की आप हमारे स्वामी है .अपने चरणों की धूल का
सेवन हम आपको कैसे करा सकते है .हम तो घोर पाप में पढ़ जायेंगे इससे ….
पुरे द्वारिका मैं ऐलान किया गया इसका पर कोई भी कृष्ण भक्त
आगे न आया …सभी राज्यों में संदेशा पहुचाया गया ..पर निराशा हाथ
लगी ..कृष्ण ने फिर अपने एक सेवक को ब्रज में भेजा ….
जब वो सेवक जेसे ही
वहा पंहुचा …ब्रज में घाट पर पानी भरती उनकी गोपियों को उनका रथ देख
श्री कृष्ण के आने का अहसास हुआ ..पर समीप आने पर देखा कोई और था ..जब
उस सेवक ने कृष्ण के बारे में उन्हें बताया तो सभी की आँखों से आंसू रुक नही
रहे थे …
एक बोली हमारे स्वामी पीढ़ा में है .तभी मेरा मन कबसे भरी हो रहा
था …तो दूजी तभी मेरा भी मन घबरा रहा था …..
सेवक ने जब बताया उन गोपियों को तुरंत वो अपने चरणों की
धूल उसे देने तयार हो गयी ….सेवक ने कहा फिर आप लोग पाप की भागिदार हो
जाएँगी ….
गोपियाँ बोली कैसी बात करते हो तुम ..हमारे कृष्ण पीढ़ा
में है ..उन्हें छोढ़कर आप पाप पुण्य के बारे में कैसे सोच सकते है .अगर हमारे
कोई एक पाप करने से हमारे कृष्ण का भला होता है तो हम ऐसा हज़ारों
पाप करने को तयार है ..सभी ने अपने चरणों की धूल अपनी चुनरी में बांध के उसे
दे दी ….
और उसकी एक चुटकी धूल का सेवन कृष्ण करते ही पीढ़ा मुक्त
हुए …..
जब कृष्ण को ये पता चला की वो धूल उनकी गोपियों ने उन
तक पहुचाई ये देख कृष्ण और उनकी दोनों पत्नियों की आँखे नम हो गयी …..उन
दोनों ने कृष्ण से माफ़ी मांगी
श्री कृष्ण बोले मैं सिर्फ यही दिखाना चाहता था सबको कि यदि कोई व्यक्ति किसी कि भक्ति या
प्रेम करे तो उसे पूरी श्रद्धा से निभाये ..वह अपने प्रेम को उसकी चरम सीमा
तक पहुचाये …
अपने प्रेम को निभाते हुए अगर उसे पाप का भी भागीदार बनना
पढ़े तो भी वो पीछे न हटे ..सच्चा प्रेम वही है जो हर परिस्थति में अपने प्रेम का साथ दे और सम्पूर्ण रूप से आत्मसमर्पण करे ..
जो ऐसा
करता है उस प्रेम में मैं सदैव निवास करता हूँ ..
जय हो द्वारिकाधीश तुम्हारी जय हो द्वारिकाधीश
जय हो द्वारिकाधीश तुम्हारी जय हो द्वारिकाधीश
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