फिर याद
है आयी
पूर्ण समर्पण
करके आई
नए संसार
में खोया था वो
अपनों में भी
तनहा था वो
परियो की याद
दिल में बसाए
मज़बूरी को रोया
था वो
बीती रातें
छिपी ह्रदय में
चेहरे पे एक
नकाब लिए था
अपने नन्हे
फूल को भी
दिल से
याद करने का भी
मन न था उसका
जा रहा नए
सपने सजाने
अपनी दुल्हन को
संग ले आने
हर पल
जुड़ा था
अपने अतीत से
एक और
नया घर उसका
दूजे
उसका अनचाहा रिश्ता …
बढे जा रहे
हर कदम थे
रस्मो को
अपमानित करने
उस पावन
सिन्दूर के
पक्के रंग को
निर्लज करने
हाथ न काँपे
चड़ा दिया उस
रंग को
उसने
मन में अभिलाषा
मुस्काई
आज घडी फिर
सुहागरात की आई
आज घडी फिर
सुहागरात की आई
एक और हसीं
मेरे संग
आई
दूजी और
अतीत था उसका
अविचल ,अस्थिर
अनजाना सच से
आँचल में छिपाए
अपने प्रिय के
पावन प्रेम को …
देनी है आज
उसको
दिल खोल विदाई
कमजोर न करना
ईश्वर मुझको
कर जाना है
त्याग ये मुझको
माँ के गर्भ में
सोया था वो
देख रहा पल
पल तनहाई
बरातियो की
भीड़ में जिस पल
शान से आये
दुल्हे राजा
माँ ने मिलवाया
था उसको
देख ले इसको
ये ईश्वर
तेरा
प्राण पिता है
ये पल
अनमोल
इस एक ही
पल में
खुशिया ढेरो तू
बटोर ले
था तकाजा कुछ
वक़्त का ऐसा
पल ये
बस अब कुछ
ही क्षण का था
दर्द से थी उसकी
माँ कहराई
कहने लगी
चलो अब
हुयी विदाई
याद शब्द
फिर उनके आये
हँसते हुए हर
एक पल जाना
साथ में फिर तुम
खुशियाँ लाना
पर अश्रुधारा
फिर रुक न पायी
अंतिम विदा
पूर्ण कर आई
मैं नारी
फिर भी
बेवफा कहलाई
मैं
अंतिम विदा
पूर्ण कर आई
अंतिम विदा
पूर्ण कर आई
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