अपनी दुनिया में सोये हुए थी
आस तेरी वफाई की बाकी न थी
चाह तुझे पाने की बची न थी
फिर से क्यों दिल परेशां सा था
फिर से क्यों वही अहसास सा था
समझाया बहुत इस दिल को मैंने
पर बहलाना उसे मुश्किल सा था
अनजाने दिल को आहट सी हुयी
लगा की जैसे तू आ गया
सदियों के बाद मेरे गुलशन में
जैसे फिर एक फूल महका सा गया
पर जब आंख खुली
फिर से वही ख़ामोशी …..
न समझ पायी ये सच कभी
तूफानों का मंजर है ये
जो कभी थमेगा ही नहीं .........
dur hai tujse phir kyu har ek pal tere paas hai
jazbaat hai ye mere ya sirf kuch ahsaas hai ...........
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