चांदनी रात में
तारों की छाँव में
बादलों की आढ़ में
मावठ की उन बूंदों में
मिट्टी की भीनी सी खुशबू में
देखा उसने
बदलो में उस चाँद को
वो मुस्कुराई
जेसे मिल गया
चेहरे का वो
नूर उसको
चमक ऐसी
लौटी उसकी
उगता हुआ
सूरज हो जेसे
कुछ देर बाद
अचानक उसने
दबी दबी
गुनगुनाहट सुनी
माँ …ओ ..माँ
तू क्यों हुयी पराई
तू मुझसे मिलने
रोज हे आती
संग क्यों न
मेरे पिता को लायी
माँ ..ओ ..माँ
तू क्यों हुयी परायी
देखा फिर उसने
खोजा उसको
दूर आसमान में
चमक रहा था
सबसे रोशन
एक सितारा
ध्रुव तारा था
बोली तू यहाँ
है केसे
में तो तुझे
उनके ह्रदय में
बसा के आई
फिर क्यों तू
यहाँ है ऐसे
कमी कहाँ तुझे
उस पावन प्रिय की
जो मैं भी न थी
तुझे दे आई
अपने प्रियतम की
धड्ध्कन में तो
तुझे मैं
बसर कर आई
दूर कहा मेरा
कान्हा तुजसे
आज उसे है
फर्ज निभाना
जग में है
बड़ा बन जाना
दोष न तेरा
न था उसका
कमी तेरी माँ के
संग है आई ..
तुजसे भी था
नन्हा फूल वो
केसे लेता
तुझ कली को
संग वो
थमने दे
दौर इन
तुफानो का
तुझे मिलेगा
प्यार वो
उनका
आज भी माँ
ही तेरी सब है
मात पित्र और
सब जग है
उसमे ही तू
देख झांक के
दिल में बसा है
वो हरजाई
दौर आज भी
थमा नही है
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