कब्र पे किसी के पैर रख छू ले जहाँ को
ये तमन्ना नही अपना गुलिस्तां सजाये हम
किसी दिलरुबा को छूने की तमन्ना लिए
क्यों किसी और का दामन चुराए हम
गवारां नही जरा भी अपनी ख़ुशी के लिए
किसी और के चंद अश्कों को बहाए हम
जो निभा न सके इश्क अपना एक पल भी कभी
तो ये हक नहीं की इश्क इबादत भी कहलाये हम ..
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